Saturday, December 4, 2010

"जय हिंद" - जोशीले नारे की रोचक कहानी

वैसे तो जय हिन्द नारे का सीधा सम्बन्ध नेताजी से है मगर सबसे पहले प्रयोगकर्ता नेताजी सुभाष नहीं थे. आइये देखें यह किसके हृदय में पहले पहल उमड़ा और आम भारतीयों के लिए जय-घोष बन गया.

जय हिन्दके नारे की शुरूआत जिनसे होती है उन क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई का जन्म 15 सितम्बर 1891 को थिरूवनंतपुरम में हुआ था. गुलामी के के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज के अभ्यासकाल के दौरान जय हिन्दको अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया.

1908
में पिल्लई आगे के अभ्यास के लिए जर्मनी चले गए.अर्थशास्त्र में पी.एच.डी करने के बाद जर्मनी से ही अंग्रेजो के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू की. प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उन्होने जर्मन नौ-सेना में जूनियर अफसर का पद सम्भाला. 22 सितम्बर 1914 के दिन एम्डेननामक जर्मन जहाज से चेन्नई पर बमबारी की. पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब जय हिन्दसे उनका अभिवादन किया. पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को प्रभावित कर गए.
इधर नेताजी आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना करना चाहते थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन ब्रिटिश सैनिको को कैद किया था, उनमें भारतीय सैनिक भी थे. 1941 में जर्मन की क़ैदियों की छावणी में नेताजी ने इन्हे सम्बोधित किया तथा अंग्रेजो का पक्ष छोड़ आजाद हिन्द फौज में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया. यह समाचार अखबारों में छपा तो जर्मन में रह रहे भारतीय विद्यार्थी आबिद हुसैन ने अपनी पढ़ाई छोड़ नेताजी के सेक्रेट्री का पद सम्भाल लिया. आजाद हिन्द फौज के सैनिक आपस में अभिवादन किस भारतीय शब्द से करे यह प्रश्न सामने आया तब हुसैन नेजय हिन्दका सुझाव दिया. अंतः 2 नवम्बर 1941 को जय-हिन्दफौज का युद्धघोष बन गया. जल्दी ही भारत भर में यह गूँजने लगा, मात्र कॉंग्रेस पर तब इसका प्रभाव नहीं था.

1946
में एक चुनाव सभा में जब लोग कॉग्रेस जिन्दाबादके नारे लगा रहे थे, नेहरूजी ने लोगो से जय हिन्दका नारा लगाने के लिए कहा. अब तक वन्दे-मातरमही कॉंग्रेस की अहिंसक लड़ाई का नारा रहा था, अब सुभाष बोस की लड़ाई जिसमें हिंसा का विरोध नहीं था के नारे जय हिन्दमें भेद खत्म हो गया.

15
अगस्त 1947 को नेहरूजी ने लाल किल्ले से अपने पहले भाषण का समापन जय हिन्दसे किया. तमामjai-hind-new-delhi डाकघरों को सुचना भेजी गई की डाक टिकट चाहे राजा ज्योर्ज की मुखाकृति की उपयोग में आये उस पर मुहर जय हिन्दकी लगाई जाये. यह 31 दिसम्बर 1947 तक यही मुहर चलती रही. केवल जोधपुर के गिर्दीकोट डाकघर ने इसका उपयोग नवम्बर 1955 तक जारी रखा. आज़ाद भारत की पहली डाक टिकट पर भी जय हिन्दलिखा हुआ था.

जय हिन्दअमर हो गया मगर क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई इतिहास में कहीं खो गए

चेतावनी देने के लिए लाल रंग का ही इस्तेमाल क्यों होता है?


 ट्राफिक सिग्नल हो या जहाजों के द्वारा एक दूसरे को दिए जाने वाले संकेत, खिलाड़ी को खेल से बाहर कर देने का संकेत हो या रेलगाड़ी को रूकने का संदेश देने वाला संकेत, हर जगह लाल रंग का ही इस्तेमाल किया जाता है. आखिर लाल रंग ही चेतावनी देने के लिए क्यों इस्तेमाल किया जाता है?

 चटखदार केसरी-पीला रंग लाल रंग से भी अधिक स्पष्ट होता है. इसलिए लाइफ जैकेट से लेकर बचावकर्मियों की जैकेट का रंग चटखदार केसरी होता है. इसके अलावा दुर्गम स्थलों पर फंसे शोधकर्ताओं के द्वारा अपने स्थान की जानकारी देने के लिए पिस्तोल से जो रोशनी छोड़ी जाती है वह भी चटख केसरी होती है, लाल नहीं
इसकी मुख्यत: दो वजहें हो सकती है. पहली वजह यह है कि लाल रंग की तरंगों की लम्बाई अधिक होती है. यानी कि आप लाल रंग को काफी दूर से देख पाते हैं. इस वजह से तेज गति से आते वाहनों को रूकने का संकेत दे पाना सरल हो जाता है. दूसरी वजह है ब्रिटिश अधिकारियों की यह सोच कि चुँकि रक्त का रंग भी लाल होता है और यह रंग भड़काने वाला होता है, इसलिए चेतावनी देने के लिए इस रंग का उपयोग किया जाना चाहिए.
बात 19वीं सदी की है. 1886 में ब्रिटिश संसद नें गाडियों को रूकने का संकेत देने के लिए लाल रंग का इस्तेमाल करने का विधेयक पारित किया था. इसके बाद रेलगाडियों को रूकने का संकेत देने के लिए भी लाल रंग का इस्तेमाल करना शुरू किया गया. हालाँकि इसके पहले भी इस रंग का इस्तेमाल होता है. वर्षों पहले जब जहाजों में ईंधन तथा विस्फोटक सामग्री भरी जाती तो जहाज के कर्मचारी जहाज के सबसे ऊपर वाले भाग पर चढ कर लाल पताका फहराते थे ताकी बाकी जहाज दूर रहें. तब से लाल रंग को चेतावनी स्वरूप रंग के रूप में मान्यता मिल गई.
एक रोचक तथ्य यह भी है कि ट्राफिक सिग्नल में लाल रंग सबसे ऊपर होता है परंतु रेलगाड़ी के सिग्नल में सबसे नीचे होता है. ऐसा इसलिए ताकी रेलगाड़ी के इंजन के ड्राइवर को लाल रंग आसानी से और काफी दूर से भी दिखाई दे जाए. 
और अंत में क्या चेतावनी देने के लिए हर जगह लाल रंग का ही इस्तेमाल होता है? यह सच नहीं है.